वसंत पंचमी ज्ञान, संस्कृति और प्रकृति का उत्सव ही नही बल्कि यह एक जीवन दर्शन का पर्व हैं : डा. श्रीप्रकाश मिश्र।
वसंत पंचमी ज्ञान, संस्कृति और प्रकृति का उत्सव ही नही बल्कि यह एक जीवन दर्शन का पर्व हैं : डा. श्रीप्रकाश मिश्र।
वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
बसंत पंचमी के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा मातृभूमि सेवा मिशन के तत्वावधान में ऋतु संवाद कार्यक्रम समन्न।
कुरुक्षेत्र 03 फरवरी :
वसंत पंचमी भारत के सांस्कृतिक और धार्मिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व न केवल ऋतु परिवर्तन का प्रतीक है, बल्कि ज्ञान, कला और शिक्षा के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का भी अवसर है। वसंत पंचमी को देवी सरस्वती के पूजन के साथ-साथ प्रकृति के सौंदर्य का उत्सव भी कहा जा सकता है।वसंत पंचमी ज्ञान, संस्कृति और प्रकृति का उत्सव ही नही बल्कि यह एक जीवन दर्शन का पर्व हैं। यह विचार बसंत पंचमी के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा आयोजित ऋतु संवाद कार्यक्रम में मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने व्यक्त किये।कार्यक्रम का शुभारम्भ अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती, भारतमाता एवं योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के चित्र के समक्ष माल्यार्पण, पुष्पार्चन दीप प्रज्ज्वलन एवं सरस्वती वंदना से हुआ। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने बसंतोत्सव के उपलक्ष्य में विभिन्न विधाओं में सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि के निर्माण के बाद जब संसार को निर्जीव और नीरस पाया, तब उन्होंने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे देवी सरस्वती का प्राकट्य हुआ। देवी सरस्वती ने अपने वीणा के स्वरों से संसार में जीवन और ऊर्जा का संचार किया। तभी से इस दिन को ज्ञान और संगीत की देवी को समर्पित किया गया।वसंत पंचमी केवल धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह ऋतु परिवर्तन और प्रकृति के नवीनीकरण का भी संकेत है। यह दिन वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है, जब धरती पीली सरसों की चादर ओढ़ लेती है और आम के पेड़ों पर बौर आने लगते हैं। यह समय खेत-खलिहानों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। किसान इस दिन अपने खेतों को देखकर प्रसन्नता महसूस करते हैं और नई फसल की तैयारी में जुट जाते हैं।पीला रंग, जो इस पर्व का मुख्य प्रतीक है, वसंत ऋतु का रंग है। यह रंग ऊर्जा, आशा और नई शुरुआत का प्रतीक है।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा आज के समय में वसंत पंचमी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है। इसे सांस्कृतिक जागरूकता और पर्यावरण संरक्षण के साथ भी जोड़ा जा रहा है। कई स्थानों पर इस दिन पेड़ लगाने, जल संरक्षण और स्वच्छता अभियानों का आयोजन किया जाता है।वसंत पंचमी समाज में सामूहिकता और भाईचारे का संदेश देती है। इस दिन विद्यालयों और संस्थानों में सामूहिक सरस्वती पूजन, संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।इस पर्व का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है की यह मातृशक्ति को सशक्तिकरण और उनकी शिक्षा के महत्व को रेखांकित करता है। सरस्वती, जो विद्या की देवी हैं, हर व्यक्ति को यह संदेश देती हैं कि ज्ञान प्राप्ति में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। बसंती पंचमी का पर्व भारत एवं भारतीयता के विभिन्न घटनाओ, महत्व एवं प्रासंगिकता को समेटे हुए है। कार्यक्रम केअति विशिष्ट अतिथि मातृभूमि सेवा मिशन की कूल्लू इकाई के संयोजक सुशील पाठला ने कहा मातृभूमि सेवा मिशन अपने सनातन संकल्प को पुरा करते हुए लोक मंगल के कार्य में समर्पित है। कार्यक्रम नई समाजसेवी एवं शिक्षाविद प्रताप जी ने भी बतौर अति बिशिष्ट अतिथि सम्बोधित किया।
कार्यक्रम का संचालन कपिल मदान एवं मास्टर बाबू राम ने संयुक्त रूप से किया। कार्यक्रम में सभी अतिथियों को मातृभूमि सेवा मिशन की ओर से स्मृति चिन्ह एवं अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में मातृभूमि सेवा मिशन की कुल्लू, हिमाचल इकाई के नरोत्तम, सुषमा ठाकुर, पुष्पा देवी, आशा शर्मा, डा. रूपा ठाकुर, रवि कुमार सूद, नरेश कुमार, राजीव करीर, सुरेंदर सहित अनेक सामाजिक, धार्मिक सदस्यों के प्रतिनिधि एवं अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे।