अद्भुत, अतुलनीय, अनुपम भारत का भाषा परिवारः डॉ. वीरेन्द्र पाल


अद्भुत, अतुलनीय, अनुपम भारत का भाषा परिवारः डॉ. वीरेन्द्र पाल।
वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
हरियाणवी बोली का इतिहास हजारो साल पुरानाः डॉ. महासिंह पूनिया।
मातृभाषा दिवस पर विद्यार्थियों ने दी हरियाणवी, पंजाबी, डोगरी, मराठी, बंगाली बोली एवं भाषाओं में प्रस्तुतियां में विद्यार्थियों को मातृभाषा व स्थानीय बोलियो से जुडे़ रहने का किया आह्वान।
कुरुक्षेत्र, 21 फरवरी : कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. वीरेंद्र पाल ने कहा कि भारत का भाषा परिवार जितना वैज्ञानिक है, उसका मुकाबला संसार की कोई भाषा नहीं कर सकती। सभी भाषाएं अपनी जगह महत्त्वपूर्ण है, लेकिन भारत में हिंदी और उसकी जननी संस्कृत को प्राचीन भारत के मनीषियों ने इतने वैज्ञानिक तरीके से विकसित किया कि यह अद्भुत, अतुलनीय व अनुपम कहलाई। वह शुक्रवार को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय स्थित जनसंचार एवं मीडिया प्रौद्योगिकी संस्थान में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
उन्होंने बताया कि किस प्रकार हिंदी एक धवनांतरण भाषा है, यानी जैसे बोली जाती है, वैसे ही लिखी जाती है, और इसी कारण इसके उच्चारण औ अभिव्यक्ति में दोहरे अर्थ उपजने का संकट ही पैदा नहीं होता। इसी प्रकार संस्कृत हर शब्द अपने आप में पूर्ण है, और उच्चारण इतना वैज्ञानिक है कि अस्पष्टता उत्पन्न हो ही नहीं सकती।
कुवि कुलसचिव डॉ. वीरेन्द्र पाल ने कहा कि संसार के विभिन्न देशों में भाषा के शिक्षण से जुड़े अपने अनुभव विद्यार्थियों से सांझा करते हुए मातृभाषा का महत्व बताया। उन्होंने कहा कि आप संसार की चाहे कितनी भाषाएं सीखो लेकिन अपनी मातृभाषा और अपनी स्थानीय बोलियों से दूरी न बनाएं क्योंकि वो आपकी वास्तविक अभिव्यक्ति है, उसमें आपका मूल छिपा है।
संस्थान के निदेशक डॉ महासिंह पूनिया ने कहा कि मातृभाषा और स्थानीय बोलियो की महिमा का कितना गुणगान करें, जितना करेंगे वो कम पड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि हरियाणवी बोली का इतिहास हजारो साल पुराना है। उन्होंने विद्यार्थियों के साथ अपने विभिन्न देशों में भ्रमण के अनुभव साझा करते हुए बताया कि किसी भी व्यक्ति की वास्तविक शक्ति, उसकी सच्ची वाणी, उसकी मातृभाषा होती है। उन्होंने कहा कि लोग कहते हैं कि हरियाणवी बोली है, लेकिन पुष्ट प्रमाण सिद्ध करते हैं कि यह बोली नहीं यह भरी पूरी भाषा है। उन्होंने भारतीय वैदिक साहित्य से लेकर, अरबी, फारसी व अन्य बहुत-सी भाषाओं में हरियाणवी शब्दों के समानार्थक शब्दों का वर्णन कर विद्यार्थियों को हरियाणवी के संदर्भ में रोचक तथ्य बताए।
इस अवसर पर संस्थान शिक्षिका डॉ. मधुदीप ने बड़े रोचक अंदाज में विभिन्न आंचलिक भाषाओं में अभिवादन का उच्चारण किया। उल्लेखनीय है कि कार्यक्रम से आस्ट्रेलिया में हरियाणवी के प्रचार प्रसार का कार्य कर रहे संगठन एसोसिएशन ऑफ हरियाणवीज इन ऑस्ट्रेलिया के पदाधिकारी ऑनलाइन जुड़े थे। संगठन के अध्यक्ष सेवा सिंह ने ऑस्ट्रेलिया से विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि आप चाहे कितने बड़े ओहदे पर पहुंच जाओ, लेकिन कभी मातृभाषा और बोली से नाता न तोड़ना, उनका प्रयोग करते हुए कभी हीन भावना आपके अंदर नहीं आनी चाहिए। अध्यक्ष सेवा सिंह के अतिरिक्त इस संगठन के कई पदाधिकारियो अजय ढुल, अमित मलिक, संजीव दलाल ने इस कार्यक्रम में अपने रिकॉर्डिंड वीडियो भेज विद्यार्थियों को बताया कि वो कैसे विदेशी धरती पर नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ रहे हैं।
इस कार्यक्रम में मंच का संचालन संस्थान के विद्यार्थियों ने किया। कार्यक्रम का सबसे रूचिकर पहलू वह रहा जब भारत के विभिन्न राज्यों से संस्थान में पढ़ रहे विद्यार्थियों में से किसी ने पंजाबी, किसी ने राजस्थानी, किसी ने भोजपुरी और दो विदेशी विद्यार्थियों ने बांग्ला और अफ्रीका की स्थानीय भाषा में कुछ रोचक चीजें सुनाई।
इस अवसर पर संस्थान के शिक्षक डॉ. आबिद ने भी विभिन्न स्थानीय बोलियों के प्रयोग से जुड़े अपने अनुभव सांझे किए। कार्यक्रम में संस्थान शिक्षक डॉ तपेश किरण, गौरव कुमार, अमित जांगड़ा, डॉ. प्रदीप राम, सचिन वर्मा, ऋतु, डॉ. सपना कालिमा, डॉ. अतुल, प्रीति, राहुल अरोड़ा, कंचन शर्मा व नीतिन उपस्थित थे।