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उत्तराखंड में बिना मान्यता के नहीं चलेंगे मदरसे: नैनीताल हाईकोर्ट का आदेश

उत्तराखंड में बिना मान्यता के नहीं चलेंगे मदरसे: नैनीताल हाईकोर्ट का आदेश,

सागर मलिक

सार:मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अवैध मदरसों की फंडिंग की जांच के आदेश दिए हैं. उन्होंने कहा कि राज्य में अवैध अतिक्रमण, अवैध मजार या अन्य गैरकानूनी गतिविधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.

नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड में बिना सरकारी मान्यता के संचालित हो रहे मदरसों पर सख्त रुख अपनाते हुए आदेश दिया है कि बिना मान्यता के कोई भी मदरसा संचालित नहीं किया जाएगा. यह फैसला देहरादून के विकास नगर स्थित इनामुल उलूम सोसाइटी की याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें सोसाइटी ने अपने भवन की सील खोलने की मांग की थी. कोर्ट ने अंतरिम राहत देते हुए भवन की सील खोलने का निर्देश दिया, लेकिन यह शर्त रखी कि याचिकाकर्ता बिना सरकारी मान्यता के मदरसा संचालित नहीं करेगा.

उत्तराखंड सरकार ने हाल ही में राज्य में अवैध रूप से संचालित हो रहे मदरसों के खिलाफ कार्रवाई तेज कर दी है. सरकारी अनुमानों के अनुसार, राज्य में लगभग 450 पंजीकृत मदरसे हैं, जबकि 500 से अधिक बिना मान्यता के संचालित हो रहे हैं. इन अवैध मदरसों में से 136 को अब तक सील किया जा चुका है.

इस कार्रवाई के खिलाफ जमीयत उलेमा ए हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए इसे अन्य राज्यों में मदरसों से संबंधित मामलों के साथ जोड़कर सुनवाई करने का निर्णय लिया है.

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अवैध मदरसों की फंडिंग की जांच के आदेश दिए हैं. उन्होंने कहा कि राज्य में अवैध अतिक्रमण, अवैध मजार या अन्य गैरकानूनी गतिविधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी और कानून के अनुसार उचित कदम उठाए जाएंगे.

सरकार द्वारा सील किए गए मदरसों के छात्रों के भविष्य को लेकर चिंता जताई जा रही है. उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष ने सुझाव दिया है कि बंद किए गए अवैध मदरसों के छात्रों को मान्यता प्राप्त मदरसों में स्थानांतरित किया जाए ताकि उनकी शिक्षा प्रभावित न हो.

नैनीताल हाईकोर्ट का यह आदेश उत्तराखंड में शिक्षा प्रणाली में सुधार और अवैध रूप से संचालित हो रहे मदरसों पर नियंत्रण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. इससे यह सुनिश्चित होगा कि सभी शैक्षणिक संस्थान सरकारी मानकों और नियमों के अनुसार संचालित हों, जिससे छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो.

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