मृत्यु अंत नहीं, यह तो केवल शरीर की समाप्ति है,जीवन मृत्यु के बाद भी रहता है : स्वामी ज्ञानानंद

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक दूरभाष – 94161 91877
देहदान मानवता की अनमोल सेवा।
विश्वविद्यालय में महादानियों की देह का होता है ससम्मान उपयोग : प्रो. धीमान।
श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय में देह दान जागृति एवं शपथ ग्रहण समारोह आयोजित।
कुरुक्षेत्र, 13 अगस्त : गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज ने कहा कि जो कुछ भी दिया जाता है, वह किसी न किसी रूप में कई गणित करके वापस लौटता है। मृत्यु जीवन का अंत नहीं, बल्कि केवल शरीर की समाप्ति है। मृत्यु के बाद भी जीवन रहता है। मानव जन्म के साथ शरीर तो साथ लेकर आता है, लेकिन जब विदाई का समय आता है तो जीवनभर की संचित संपदा यहीं छोड़कर जाना पड़ता है, शरीर भी साथ नहीं जाता। स्वामी ज्ञानानंद जी श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर रचना शारीर विभाग एवं श्री दधिची देह दान समिति, कुरुक्षेत्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘देह दान जागृति एवं शपथ ग्रहण समारोह’ में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि देहदान एक महान संकल्प है, जो दूसरों को नया जीवन देने का मार्ग खोलता है। उन्होंने इस अवसर पर आयुष विश्वविद्यालय और गीता ज्ञानम् संस्थान के बीच गीता और आयुर्वेद विषय पर MOU करने का भी सुझाव दिया, ताकि समाज को आध्यात्मिक और स्वास्थ्य दोनों दृष्टियों से लाभ मिल सके।
इससे पहले गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज और आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.वैद्य करतार सिंह धीमान ने देह दान का संकल्प लेने वाले महादानियों को फूल मालाएं पहना उनका अभिवादन किया और शपथ दिलाई।
देहदान समाज सेवा का सर्वोच्च स्वरूप : कुलपति।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान ने देहदान का संकल्प लेने वाले सभी समाजसेवियों का आभार जताया। उन्होंने कहा कि जब-जब समाज में आवश्यकता या समस्या आई है,हमारे ऋषि-मुनियों ने उसका समाधान किया है। जब इंद्र देवता पर विपत्ति आई थी, तब महर्षि दधीचि ने अपने प्राणों का बलिदान देकर निवारण किया। इसी प्रकार, मेडिकल कॉलेजों के सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि शिक्षा और शोध के लिए देह की व्यवस्था कैसे हो। इस कमी को पूरा करने के लिए संस्थाओं और समाजसेवियों ने आगे बढ़कर देहदान का संकल्प लिया।
कुलपति ने आश्वस्त किया कि श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय में देहदान करने वाले महादानियों की देह का सम्मान उपयोग किया जाता है। उनके शरीर का प्रत्येक अंग और चिकित्सा शिक्षा और शोध के कार्यों में पूरी संवेदनशीलता और सम्मान के साथ इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद, निस्तारण की पूरी प्रक्रिया भी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के अनुरूप सम्मान पूर्वक की जाती है। उन्होंने सभी महादानियों और उनके परिवारों के प्रति गहरी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा कि आपका यह संकल्प आने वाली पीढ़ियों को नया जीवन देने का मार्ग प्रशस्त करेगा और समाज के स्वास्थ्य एवं ज्ञान दोनों को मजबूत करेगा।
इससे पहले आयुर्वेद अध्ययन एवं अनुसंधान संस्थान के प्राचार्य प्रो.आशीष मेहता ने सभी अतिथियों का आभार जताया। इंदिरा गांधी महाविद्यालय लाडवा से सेवानिवृत्त प्राचार्य डॉ. हरि प्रकाश शर्मा ने देश हमें देता है सब कुछ…, हम भी तो कुछ देना सीखे…, गीत सुनाया। रचना शारीर विभाग के अध्यक्ष प्रो. सतीश वत्स ने देहदान की प्रक्रिया और निस्तारण की प्रक्रिया समझाई। इस अवसर पर आयुर्वेदिक अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक प्रो.राजा सिंगला, प्रो. पीसी मंगल, प्रो. शीतल सिंगला, प्रो. नीलम कुमारी, प्रो.शुभा कौशल, डॉ. सुधीर मलिक, प्रो. रणधीर सिंह, प्रो. रविंद्र अरोड़ा, डॉ. आशीष नांदल व डॉ.प्रीति गहलावत, उपकुलसचिव विकाश शर्मा समेत अन्य शिक्षक, कर्मचारी और विद्यार्थी उपस्थित रहे।
इन्होंने लिया देहदान का संकल्प।
श्री दधीचि देहदान समिति के अध्यक्ष अशोक रोशा, संरक्षक जगमोहन बंसल, एमके मौद्गिल, शिक्षाविद रमेश दत्त शर्मा, उपाध्यक्ष मनोज सेतिया, रामचंद्र सैनी, जीतेंद्र मास्टर, वीके सिंगला, विनोद जोतवाल, डीपी महावीर, दीपक गिल, कैलाश गोयल, अमित शर्मा, अनु मालियान, बृज लाल धीमान, चंद्रशेखर अत्रे, दीपक गिल, डॉ. सुतेंद्र गौड़, कमलेश धीमान, जयप्रकाश पांवर, कैलाश गोयल, डीपी मिथुन, प्रेम मेहता, राजेंद्र धीमान, लाला नितेश मंगल, डॉ. कृष्ण मलिक, रामपाल कारगिल योद्धा, रविंद्र अग्रवाल, विनोद जोतवाल, वीरेंद्र वर्मा, नाथी राम गुप्ता समेत अन्य ने देह दान का संकल्प लिया।