परमात्मा मंगलमय है : समर्थगुरू सिद्धार्थ औलिया

परमात्मा मंगलमय है : समर्थगुरू सिद्धार्थ औलिया
वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक
कुरुक्षेत्र : श्री दुर्गा देवी मन्दिर, पिपली, कुरुक्षेत्र के पीठाधीश और समर्थगुरु धाम हिमाचल के जोनल कोऑर्डिनेटर आचार्य डॉ. सुरेश मिश्रा के निर्देशन में शिव पर्वत पर स्थित शिव शक्ति आश्रम कसौली में गुरुवार को एकादशी तिथि पर विशेष भक्तिपूर्ण सत्संग हुआ।
मां अन्नपूर्णा , मां योगेश बिमला, अंकुर सिंह और वृंदा सिंह जी के साथ भारत के आदि सनातन धर्म पर विशेष चर्चा हुई।
संतत्व की यात्रा पर चलने वाले साधक अगर दो सुनहरी सूत्र जीवन में उतार लें, तो सभी के जीवन में संतत्व घटित हो जाता है।
गुरु कही करना अर्थात साधना में 100% सचेतन प्रयास।
गुरु सेवा अर्थात्- गुरु के हाथ-पांव बन जाना। गुरु के कार्य को अपना आनंद बना लेना।
सनातन धर्म की पुन: स्थापना के लिए 5 जरूरी बातें:
शक्तिशाली एवं समृद्ध हिन्दू राष्ट्र की स्थापना।
जाति मुक्त समाज की स्थापना।
सामुदायिक एकता
सांस्कृतिक एकता
आध्यात्मिक केन्द्रों का विकास।
सनातन धर्म की 5 पहचान है-
ॐ, अद्वैत, अहिंसा, आरती और अस्त्र।
ॐ को जानें और उसका जाप करें।
ब्रह्म को सर्वव्यापी जानें।
मनसा, वाचा, कर्मणा किसी को चोट न पहुँचाएँ।
प्रतिदिन आरती करें।
आत्मरक्षा के लिए अस्त्र रखें।
समर्थगुरुधारा संस्थान मुरथल, हरियाणा के मुख्य संस्थापक आदरणीय समर्थगुरु सिद्धार्थ औलिया जी ने जनमानस के कल्याण हेतु बताया है कि जब तक युद्ध की स्थिति बनी हुई है, तब तक अपनी सुरक्षा के लिए निम्न उपाय अवश्य करेंः
अधिक से अधिक माला पहन कर रहें।
प्रतिदिन एक बार दैनिक प्रार्थना करें।
ऑनलाइन साप्ताहिक दरबार अवश्य करें।
सूफी दरबार में बताई विधि से प्रतिदिन रात सोते समय स्वयं को, परिवार को तथा घर को सुरिक्षत करें।
अधिक से अधिक मंगल भाव में रहें।
मंगल भाव क्या है ?
श्वास के समय भाव करें कि परमात्मा मंगलमय है।
प्रश्वास के समय भाव करें कि आत्मा मंगलमय है।