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दिव्या ज्योति जागृती संस्थान द्वारा होली का त्यौहार बड़ी श्रद्धा भावना से मनाया गया, साध्वी दीपिका भारती जी ने बताया कि इस होली पर अपनी आत्मा को दिव्यता और सकारात्मकता से रंग दें

दिव्या ज्योति जागृती संस्थान द्वारा होली का त्यौहार बड़ी श्रद्धा भावना से मनाया गया, साध्वी दीपिका भारती जी ने बताया कि इस होली पर अपनी आत्मा को दिव्यता और सकारात्मकता से रंग दें

(पंजाब)फिरोजपुर 10 मार्च {कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता}=

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान फिरोजपुर आश्रम में होली का त्यौहार श्रद्धा अथवा धूम धाम से मनाया गया। सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की परम शिष्य साध्वी दीपिका भारती जी ने बताया कि एक बार फिर होली ‘जीवंत रंगों का त्योहार’ आ गया है, और हर कोई इसका आनंद लेने के लिए आतुर है। लेकिन आइए देखें कि होली वास्तव में क्या दर्शाती है और हमने इसकी वास्तविक क्षमता को न जानते हुए इसे कैसे विकृत कर दिया है। कुछ लोगों को होली के त्योहार की उमंग और जीवंतता पसंद है और कुछ लोग इसे विकृत तरीके से मनाने के कारण इससे नफरत करते हैं। होली का मतलब सामाजिक गुणवत्ता और सांस्कृतिक समावेशिता को दर्शाना है। यह वह समय है जब सभी पेड़ों पर नए पत्ते आ गए हैं और सभी रंगों और रंगों के फूल खिले हुए हैं। अपनी संपूर्ण महिमा में दीप्तिमान प्रकृति की विशुद्ध सुंदरता बस लुभावनी है। जब बाहरी प्रकृति इतनी जीवंत और गौरवशाली है तो मनुष्य इस महिमा के साथ कैसे नहीं नाच सकता! और इस तरह, इस खूबसूरत त्योहार का विकास हुआ।
साध्वी जी ने आगे बताया के इस त्योहार से प्रहलाद से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी जुड़ी हुई है। ऐसा हुआ कि असुर राजा हिरण्यकश्यप ने तपस्या करके मनचाहा वरदान प्राप्त कर लिया और बहुत शक्तिशाली हो गया। उसने सभी को भगवान विष्णु की पूजा करने से मना कर दिया और खुद को पूजनीय घोषित कर दिया। उसके छोटे बेटे प्रहलाद ने उसकी बात नहीं मानी। उसने कहा कि भगवान विष्णु उसके सर्वोच्च भगवान हैं और वह अपने पिता की सलाह नहीं मानेगा। हिरण्यकश्यप क्रोधित हो गया और उसने अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर अपने बेटे को चिता में जलाने की साजिश रची। होलिका, जिसे अग्नि के प्रति उदासीन रहने का वरदान प्राप्त था, प्रहलाद के साथ चिता में बैठ गई। लेकिन आश्चर्य की बात है! होलिका जल गई और प्रहलाद बच गया। इस प्रकार, पारंपरिक रूप से होली असत्य और बुराई पर सत्य और अच्छाई की जीत के उपलक्ष्य में मनाई जाती है।
प्राकृतिक सामग्री से बने होली के रंगों के कई चिकित्सीय उपयोग हैं। दुर्भाग्य से, इन दिनों होली के रंगों को बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सभी प्राकृतिक सामग्री की जगह रसायनों ने ले ली है। पहले रंग बनाने के लिए सब्जियों और फूलों का प्रयोग किया जाता था, वहीं आज रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग ने गंभीर बीमारियों को जन्म दिया है, यह त्वचा की विभिन्न समस्याओं को जन्म देते हैं। जबकि वैदिक काल में रंगों के लिए फूलों का प्रयोग किया जाता था। चांदी या सफेद रंग के लिए चंदन का इस्तेमाल किया गया, जिसमें रोगाणुओं को नष्ट करने की प्रबल शक्ति होती है, हमारा झंडा, हमारे धर्म, हमारे त्योहार, ये सभी अपनी उत्पत्ति को गहराई से निहित वास्तविक व्यावहारिक आध्यात्मिकता में रखते हैं।
साध्वी जी ने बताया कि होली का महत्व समझने के लिए हमें भी अध्यात्म में उतरना हो गा जो कि यह पूर्ण संत की शरणागत हो के जाना जा सकता है । भारतीय त्यौहारों की गहराई समझने के लिए उस अवस्था को प्राप्त करना होगा जिस अवस्था में इनको मनाने के लिए ऋषि मुनियों संतों ने त्यौहारों की शुरुआत की थी, इसके लिए पूर्ण संत महापुरुष की शरणागत होना होगा तभी हमारे त्यौहारों का वास्तविक महत्व जान पाएंगे। साथ में साध्वी रमन भारती जी मधुर भजनों पर संगत को झूमने के लिए मजबूर कर दिया।

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