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जनसंघ से भाजपा तक: बलराज मधोक की विरासत और आज की सियासत

जनसंघ से भाजपा तक: बलराज मधोक की विरासत और आज की सियासत।

गुरुग्राम संपादक – ऋषि प्रकाश कौशिक।

भूमिका: एक विचारधारा की लंबी यात्रा।

गुरुग्राम : आज जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपना स्थापना दिवस मना रही है, यह जरूरी हो जाता है कि हम उसकी जड़ों में झांकें – उन विचारों और व्यक्तित्वों को याद करें जिन्होंने इसकी नींव रखी। उन्हीं में एक नाम है बलराज मधोक – भारतीय दक्षिणपंथ की विचारधारा के शिरोमणि।
1951: भारतीय जनसंघ की स्थापना।
21 अक्टूबर 1951 को जब श्यामा प्रसाद।
मुखर्जी, बलराज मधोक और दीनदयाल उपाध्याय ने मिलकर भारतीय जनसंघ की स्थापना की, तब देश में यह एक वैचारिक प्रयोग मात्र था। चुनाव चिन्ह था – दीपक। यह दीपक प्रतीक था – “जन और संघ” के मेल का।
जन का मतलब – जनता,
संघ का मतलब – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ।
बलराज मधोक की सोच स्पष्ट थी: राष्ट्रवाद, संगठन और सांस्कृतिक चेतना। उनका सपना था – एक ऐसा भारत जो परंपरा और आधुनिकता दोनों का संतुलन साधे।
ABVP की नींव: छात्र आंदोलन से राष्ट्र निर्माण तक।
आज अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) को भाजपा का छात्र संगठन माना जाता है, लेकिन कितनों को पता है कि इसके संस्थापक भी बलराज मधोक ही थे ? यह संगठन महज एक छात्र इकाई नहीं, बल्कि जनसंघ की वैचारिक प्रयोगशाला बन गया।
आपातकाल और जनता पार्टी का गठबंधन।
1977 में आपातकाल के बाद जब विपक्षी दलों ने मिलकर जनता पार्टी बनाई, तो जनसंघ ने भी उसमें विलय कर लिया। यह गठबंधन अधिक समय तक नहीं चल सका।
वजह ? संघ और गैर-संघ विचारधाराओं के बीच की अंतहीन खींचतान।
1980: भाजपा का जन्म और विचारों की नई परिभाषा।
जनता पार्टी टूटने के बाद 1980 में जन्मी भाजपा। शुरुआत में इसने गांधीवादी समाजवाद को अपनाया, लेकिन वह प्रयोग विफल रहा। फिर अडवाणी और मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने राम मंदिर, राष्ट्रवाद और विकास के मुद्दों के सहारे सत्ता की सीढ़ियाँ चढ़ीं।
बलराज मधोक: जिनका भविष्य पार्टी ने पीछे छोड़ दिया।
बलराज मधोक धीरे-धीरे पार्टी की मुख्यधारा से बाहर कर दिए गए। 1973 में उन्हें जनसंघ से निष्कासित कर दिया गया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
वह भारतीय जनसंघ नाम से वैकल्पिक मंच बनाकर 2016 तक उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे।
दीपक से कमल तक: प्रतीकों का बदलता अर्थ
जनसंघ का दीपक समाज को प्रकाशमान करने का प्रतीक था – विचारधारा से प्रेरित।
भाजपा का कमल सुंदर है, पवित्र है – लेकिन आलोचकों के अनुसार यह अब एक ‘धन्नासेठों’ का प्रतीक बनता जा रहा है।
क्या भाजपा ने संघ और जन दोनों से दूरी बना ली है ?
आज का परिप्रेक्ष्य: भाजपा और संघ के रिश्ते में खटास ?
भाजपा के मौजूदा अध्यक्ष श्री जे. पी. नड्डा, जिनका कार्यकाल एक्सटेंशन पर चल रहा है, हाल ही में कह चुके हैं।
“अब भाजपा को संघ की जरूरत नहीं।”
दूसरी ओर, प्रधानमंत्री मोदी कुछ ही दिन पहले नागपुर में संघ प्रमुख से मिले।
तो क्या भाजपा और संघ के रिश्ते अब केवल रणनीति भर हैं ?
महिला नेतृत्व: प्रतीक्षा कब खत्म होगी ?
अमेरिका की तरह ही भाजपा में भी आज तक कोई महिला अध्यक्ष नहीं बनी।
अमेरिका में कमला हैरिस राष्ट्रपति बनते-बनते रह गईं।
भाजपा में सुषमा स्वराज जैसी प्रखर महिला नेता भी शीर्ष पद तक नहीं पहुँच पाईं।
क्या इस बार कुछ बदलेगा ?
निष्कर्ष : विचार बचे रहेंगे या केवल प्रतीक ?
भाजपा आज सत्ता में है, लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि उसके इतिहास में बलराज मधोक जैसे विचारक भी हैं, जिन्होंने संगठन नहीं, संघर्ष से शुरुआत की थी।
समय बदले, नेतृत्व बदले – यह स्वाभाविक है। पर अगर विचारधारा पीछे छूट जाए, तो दीपक और कमल दोनों केवल प्रतीक रह जाते हैं – खोखले और निर्वात में टंगे हुए।

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