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जीवात्मा और परमात्मा का पावन मिलन है महारास – श्री ज्ञानचंद्र द्विवदी

जीवात्मा और परमात्मा का पावन मिलन है महारास। श्री ज्ञानचंद्र दृवेदी

महारास सिद्ध योगियों की लीला है यह काम के पराभव की भी लीला है यह बात विष्णु पुराण कथा के छठे दिन कथा व्यास आचार्य ज्ञान चन्द्र द्विवेदी जी ने कही। कथा व्यास जी ने कहा कि वासना व प्रेम का बाहरी रूप एक जैसा है दिखाई पड़ता है इसलिए महारास के विषय में भ्रम होता है प्रेम में स्वसुख की अपेक्षा नहीं होती। प्रियतम को सुख पहुंचाना ही प्रेमास्पद का मूल भाव है ।प्रसंग में आगे कहा की इसके बाद भगवान ने पृथ्वी पर पाप अंत करने के लिए कंस का वध किया आतंक का समन ही कंस वध है। इसके बाद जगत को शिक्षा देने के लिए गुरुकुल में जाकर शिक्षा ग्रहण की ।द्वारिका की स्थापना विश्वकर्मा को बुलवाकर किया 48 कोस दिव्य क्षेत्र मे द्वारिका का निर्माण कराया ।निर्माण के उपरांत निर्माण करने वाले कारीगर ही भ्रमित हो गए और द्वारका मतलब द्वार कहां है कहने लगे इस कारण उसका नाम द्वारका पड़ा ।श्री कृष्ण ने 16108 कन्याओं से विवाह किया। असल मैं 16108 वेद ऋचाएं हैं वेद में तीन कांड है और 100000 मन्त्र है। पहला कर्मकांड दूसरा उपासना कांड तीसरा ज्ञान कांड। कर्मकांड में 80000 मंत्र आते हैं यह ब्रह्मचारियों के लिए है उपासना कांड में 16000 मंत्र आते हैं यह गृहस्थों के लिए है ज्ञानकांड में 4000 मंत्र आते हैं यह बानप्रस्थ के लिए है ।उपासना कांड के ही मंत्र गृहस्थो की वेद ऋचाएं है जो ब्रह्म स्पर्श पाने के लिए ही कन्याओं के रूप में अवतरित हुई भगवान के अंस में मिलकर अपने मूल तत्व में समाहित हुई ।कथा में व्यास जी आगे कहते हैं कि उद्धव जी पत्र लेकर नंद गाव पहुंचते हैं और देखते हैं कि कृष्ण की बिरह में गोपियां अपना सुध बुध खो बैठी हैं उद्धव ज्ञानमार्गी हैं इन्हें अपने ज्ञान पर अभिमान था उन्होंने देखा कि गोपियां आंख बंद करके कुछ ध्यान कर रही हैं एक गोपी के नजदीक जाकर इन्होंने पूछा की क्या कर रही हैं तो उन्होंने कहा कि कान्हा को अपने चित् से निकालने के लिए उनका ध्यान कर रही है कि कुछ क्षण निकल जाए अपने घर का कार्य तो कर सकें उद्धव ठगे से रह गए कि जिस भगवान को चित्र में लाने के लिए मैं रात दिन प्रयत्न करता हूं कि ध्यान में आ जाए। वह मेरे ध्यान में आते नहीं और गोपियां उनको चित से निकालने के लिए ध्यान कर रही है अद्भुत प्रेम की पराकाष्ठा है।

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