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केन्द्रीय कारागार फिरोजपुर में तीन दिवसीय आध्यात्मिक कार्यक्रम का किया गया आयोजन

दिशा यदि सही हैं तो दशा बदलने में देरी नहीं लगती:- स्वामी विज्ञानानंद जी।

(पंजाब)फिरोजपुर 12 मार्च {कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता}=

सेंट्रल जेल प्रशासन फिरोजपुर द्वारा कैदियों के मार्गदर्शन हेतु जेल में तीन दिवसीय आध्यात्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ जेल सहायक अधीक्षक सुखजिंदर सिंह व गगनदीप सिंह ने किया। कार्यक्रम के तहत दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा संस्थान के संस्थापक एवं संचालक श्री आशुतोष महाराज के शिष्य स्वामी विज्ञानानंद जी ने अपने उदगार व्यक्त करते हुए कहा कि परिर्वतन संसार का नियम है। इंसान अपने जीवन के दौरान अनेक प्रकार के उतार चढाव से गुजरता है। कभी कभी वह इसी उतार चढाव के दौरान इंसान अपने जीवन में कुछ गलतियों को कर जाता है। जिसके परिणाम स्वरूप वह अपने जीवन की दशा को गलत दिशा का चयन करके बर्बाद कर लेता है। और इसका मुख्य कारण है कि इंसान अपने मन का गुलाम होकर सभी कार्यो को करता है। ठीक वैसे जिस प्रकार एक बंदर सुराही में चनों को अपनी मुठी में पकड लेने के बाद उसका त्याग न करने के कारण मदारी का गुलाम हो अपना पूर्ण जीवन गुलामी में ही व्यतीत करने पर बाध्य हो जाता है। उसी कारण हम भी केवल अपने मन की गुलामी के कारण आज चारदिवारी में कैद है। मन ही इंसान के सुख दुख: का आधार है। क्योंकि इंसान मन का आश्रय बिना विवेक के केवल अपनी बुद्धि के आधार पर लेता है। अंतत: वह अधोगति को प्राप्त होता है। कोई भी इंसान जन्म से संत या असंत नहीं होता है। उसके द्वारा किए गये कर्म ही उसके भविष्य का निर्माण करते है। जिस प्रकार एक असुर की संतान प्रहलाद भक्त हुआ तो उसका कारण उसके द्वारा किए गये सही दिशा में प्रयास व सार्थक संग ही हैैैैैैैैैैैै। परन्तु एक ऋषि की संतान अपने कर्मो व संगत के कारण रावण के रूप में राक्षस कहलाया। अगर हमनें वास्तव में अपना कल्याण करना है। तो हमें भी अपने जीवन के रहते रहते उस विधि को जानना होगा जिसको जानकर अपने मन का नियत्रण कर हम परम शान्ति व कल्याण की और अग्रसर हो जीवन को सार्थक कर सकते है। और यह विधि इंसान को समय के पूर्ण संत की शरण में जाकर ही प्राप्त कर सकता है। क्योंकि जब एक दुष्ट व्यक्ति संत की शरण में जाता है तो वह भी संत का ही रूप हो जाता है। इतिहास में अनेकों उदाहरण है। जैसे कौढा राक्षस, सज्जन ठग, अंगुलीमाल, गणिका वैश्या आदि। हम भी सुधर सकते है बस जरूरत है तो केवल अपने जीवन को सही दिशा प्रदान करके अपनी दशा को सुधार अपना कल्याण करने की व मानव जीवन के उदेश्य की और अग्रसर होने की जो कि प्रभु प्राप्ति व भक्ति है। कार्यक्रम के दौरान स्वामी मेघानंद, महात्मा बलदेव और तरुण ने सुमधुर भजनों का गायन किया।

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