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सरस्वती सभ्यता भारतीय संस्कृति की पहचान : भारत भूषण भारती

सरस्वती सभ्यता भारतीय संस्कृति की पहचान : भारत भूषण भारती।

वेदों और पुराणों की रचना सरस्वती नदी के तट पर हुई : प्रो. सोमनाथ सचदेवा।
सरस्वती नदी ने भारतीय संस्कृति को किया पोषित : धुम्मन सिंह किरमिच।
केयू सरस्वती शोध उत्कृष्टता केन्द्र व हरियाणा सरस्वती हेरिटेज डेवलपमेंट बोर्ड, पंचकूला के संयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का हुआ शुभारम्भ।

कुरुक्षेत्र, प्रमोद कौशिक 30 जनवरी : सरस्वती सभ्यता भारतीय संस्कृति की पहचान है। सरस्वती नदी के पवित्र तट पर ही भारत वर्ष के ऋषियों-मुनियों ने वेदों, उपनिषदों एवं पुराणों की रचना की है। सरस्वती नदी की सभ्यता एवं संस्कृति हजारों वर्ष पुरानी है। यह उद्गार हरियाणा के मुख्यमंत्री के ओएसडी भारत भूषण भारती ने गुरुवार को केयू सीनेट हॉल में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के सरस्वती शोध उत्कृष्टता केन्द्र व हरियाणा सरस्वती हेरिटेज डेवलपमेंट बोर्ड, पंचकूला के संयुक्त तत्वावधान में ‘सरस्वती नदी – सनातन सभ्यता और संस्कृति का उद्गम स्थल – विकसित भारत 2047 के लिए दृष्टि और क्षितिज’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्यातिथि व्यक्त किए। इससे पहले कार्यक्रम का शुभारम्भ मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। इस अवसर पर सम्मेलन के संयोजक, केयू सरस्वती शोध उत्कृष्टता केन्द्र के निदेशक व छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. एआर चौधरी ने सभी अतिथियों का परिचय एवं स्वागत किया।
भारत भूषण भारती ने कहा कि प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ को पूरा विश्व देख रहा है वहीं दूसरा वैचारिक कुंभ कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में चल रहा है जो पूरे विश्व के दृष्टिकोण को मानवता की ओर ले जाएगा। उन्होंने कहा कि 2014 में भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन एवं हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल के निर्देशन में हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड की स्थापना हुई थी। वहीं हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के मार्गदर्शन में सरकार सरस्वती नदी को धरातल पर लाने के संकल्प का साकार करने में लगी हुई है। उन्होंने कहा कि भारत ने कोरोना काल में वसुदैव कुटुम्भकम की भावना का निवर्हन करते हुए विश्व में प्राणियों के जनकल्याण के लिए कोरोना वैक्सिन को वितरित किया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से प्राकृतिक खेती की ओर जाना जरूरी है ताकि हमारी भावी पीढ़ी स्वस्थ वातावरण में सांस ले सके।
अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि वेदों और पुराणों की रचना सरस्वती नदी के तट पर हुई है। उन्होंने कहा कि 11वीं सदी में इतिहासकार अलबरूनी ने किताब उल हिंद में सरस्वती नदी को धरातल पर बहने वाली नदी बताया था। उन्होंने कहा कि पहली एडी से 1500 ई.वी. तक आध्यात्मिक एवं आर्थिक रूप से भारत का विश्व की जीडीपी में 30 प्रतिशत तक योगदान होता था। उन्होंने कहा कि भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में जल प्रबंधन, कृषि विकास, बाढ़, आपदा प्रबन्धन सहित नदियों को आपस में जोड़ने की आवश्यकता है। उन्होंने एनईपी 2020 के तहत मूल्य आधारित क्रेडिट कोर्स में सरस्वती नदी इतिहास कोर्स संचालित होने की भी बात कही।
हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष धुम्मन सिंह किरमिच ने कहा कि सरस्वती नदी का भारतीय संस्कृति को पोषित करने में अहम योगदान है। उन्होंने कहा कि इस बार सरस्वती महोत्सव का शुभारम्भ हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी द्वारा आदिबद्री से किया गया। उन्होंने कहा कि जो लोग प्रयागराज नहीं जा सकते उनके लिए आदिबद्री व पिहोवा में सरस्वती नदी पर घाट बनाकर स्नान की व्यवस्था की गई है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा व्यासपुर पूर्व नाम बिलासपुर से सिरसा तक 400 किलोमीटर में सरस्वती नदी का पानी प्रवाहित किया गया। इसके लिए चौतंग, मारकंडा, दादुपुर, सोम नदी के पानी को इसमें जोड़ा गया।
आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर करतार सिंह धीमान ने कहा कि प्राचीन भारतीय ज्ञान का सृजन सरस्वती नदी के तट पर हुआ। इसलिए सरस्वती नदी ज्ञान सृजन एवं संस्कृति की प्रतीक है। सरस्वती बोर्ड के सीईओ कुमार सुप्राविन ने कहा कि हरियाणा सरकार के प्रयासों से पवित्र सरस्वती नदी के प्रति लोगों की आस्था को पहचान मिली है।
हरियाणा उच्च शिक्षा परिषद के उपाध्यक्ष प्रो. एसके गक्खड़ ने कहा कि यदि कोई नदी विलुप्त होती है तो वहां जैव विविधता एवं पर्यावरण को भी संकट पैदा होता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अतिरिक्त महानिदेशक डॉ. संजय मुंजाल ने कहा कि सरस्वती नदी के किनारे पर भारत सनातन सभ्यता का विकास हुआ। केन्द्र के निदेशक एवं सम्मेलन के संयोजक प्रो. एआर चौधरी ने कुरुक्षेत्र के माननीय सांसद नवीन जिंदल के संदेश को पढ़कर सुनाया जिसमें सम्मेलन के सफल आयोजन और सफल निष्कर्षों के पहुंचने की आशा व्यक्त की गई। उन्होंने कहा कि सरस्वती नदी सर्वविदित है तथा केन्द्र वैज्ञानिक रूप से इसे सत्यापित करने का शोध कार्य कर रहा है।
सम्मेलन में सभी अतिथियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। सभी अतिथियों द्वारा सरस्वती नदी की स्मारिका का भी विमोचन किया गया। मंच का संचालन डॉ. दीपा नतालिया द्वारा किया गया। इस अवसर पर आईसीएसआर 2025 के कन्वीनर अरविन्द कौशिक ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।
इस अवसर पर जिला उपायुक्त नेहा सिंह, इसरो वैज्ञानिक डॉ. एके गुप्ता, भाजपा के जिलाध्यक्ष सुशील राणा, प्रो. शुचिस्मिता, प्रो. नीरा राघव, प्रो. कृष्णा देवी, प्रो. बिन्दु शर्मा, डॉ. ओपी अरोड़ा, प्रो. महासिंह पूनिया, डॉ. जिम्मी शर्मा, डॉ. सलोनी पी दीवान, डॉ. नरेश कुमार, डॉ. ओपी ठाकुर, डॉ. सतीश कुमार, डॉ. बीके शुक्ला, डॉ. रामचन्द्र, महाराष्ट्र से रमेश पाटिल सहित शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।
प्रदर्शनी में सरस्वती की यात्रा को किया प्रदर्शित।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के क्रश हॉल में पवित्र नदी सरस्वती को लेकर लगाई गई प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए हरियाणा के मुख्यमंत्री के ओएसडी भारत भूषण भारती ने कहा कि यह प्रदर्शनी सरस्वती नदी की आदिबद्री से लेकर गुजरात तक प्रवाहित होने की यात्रा को प्रदर्शित करती है। उन्होंने कहा कि प्रदर्शनी में सरस्वती नदी के उद्गम स्थलों के माध्यम से संस्कृति एवं सभ्यता को भी दिखाया गया है।
इसके साथ ही प्रदर्शनी में हरियाणा में सरस्वती नदी के तट पर कुनाल, राखीगढ़ी, बनावली के समृद्ध क्षेत्रों को भी दिखाया गया है। प्रदर्शनी में प्राचीन सभ्यता से संबंधित खुदाई के दौरान मिली घडे़, पुराने मिट्टी के बर्तन एवं भगवान की शिल्पकला मूर्ति को भी प्रदर्शित किया गया।
इस अवसर पर कुवि कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा, सरस्वती हेरिटेज बोर्ड के उपाध्यक्ष धुम्मन सिंह किरमिच, भाजपा जिलाध्यक्ष सुशील राणा, केयू सरस्वती नदी शोध उत्कृष्टता केन्द्र के निदेशक प्रो. एआर चौधरी सहित अन्य गणमान्य मौजूद रहे।

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